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प्रेरक प्रसंग :: मानवता सबसे बड़ा धर्म !
बात उन दिनों की हैं जब जापान में बौद्ध धर्मसुत्र उपलब्ध नहीं थे | तभी वहाँ के एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान तेत्सुजेन ने जापानी में उन्हें प्रकाशित कराने का निर्णय लिया |

लेकिन इस काम के लिए उनके पास पैसा नहीं था | तेत्सुजेन ने इसके लिए आम लोगो से चंदा मांगना शुरू कर दिया | दस सालों तक उसने चंदा मांगकर इतना धन एकत्र कर लिया, जिससे ग्रंथ आसानी से प्रकाशित किया जा सकता था |

लेकिन तभी उनके इलाके में बाढ आ गई | लोग बेघर हो गए | तेत्सुजेन ने उदारता दिखाते हुए चंदे में प्राप्त सारा धन, बाढ पीड़ितो की सहायता में खर्च कर दिया |
इसके बाद उन्होंने फिर से प्रकाशन के लिए लोगों से चंदा मांगना प्रारम्भ कर दिया | लगभग दस सालों में उसने फिर उतना ही धन जुटा लिया, जितनी उन्हें ग्रंथ के लिए आवश्यकता थी |

लेकिन तभी देश में महामारी फैल गई और उन्होंने फिर सारा धन रोगियों की सेवा में लगा दिया | जब तीसरी बार उन्होनें ग्रंथ प्रकाशन के लिए धन एकत्र करने के लिए लोगों से चंदा मांगना शुरु किया
तो लोग नाराज़ हो गए | उन्होंने तेत्सुजेन को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया - 'आप पैसा तो ग्रथ छापने के नाम पर ले जाते हैं,लेकिन खर्च किसी और ही काम में कर देते हैं |'इस पर तेत्सुजेन ने जवाब दिया- 'ग्रंथ प्रकाशन से कहीं ज्यादा श्रेयश्कर मरते हुए लोगों को बचाना होता हैं |'तेत्सुजेन ने लोगों से हाथ जोड़कर कहा कि इंसान को सबसे पहले देश के लोगों के विषय में चिंता करनी चाहिए,धर्म की बाद में | क्योंकि जनमानस और आवाम बचेगा तभी तो धर्म का अस्तित्व रहेगा | तेत्सुजेन की बातें सुनकर लोगों को उनकी उदारता का एहसास हो गया |
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